सत ल जाने बर घासीदास सन्यासी होगे। सत असन अनमोल जिनीस ल पाए बर वाजिब साधना के जरूरत परिस। बर-पीपर सांही पवित्र वृक्ष ल छोड़के ये औंरा-धौंरा असन साधारन पेड़ के खाल्हे तपस्या म लीन होगे। ये घासीदास के निम्न वर्ग लोगन के प्रति ओखर पिरीत अउ लगाव के प्रतीक आय। लगन अउ साधना ले घासीदास एक चमत्कारिक फल सत के प्राप्ति होइस। बाद म इही सत ल दुनिया म सतनाम के संग्या मिलीस।
गुरु घासीदास हर छत्तीसगढ़ के पावन भूमि बिलासपुर के गिरौदपुरी गांव मं संवत 1756 सन् (1700) के पूस महीना के चौदस पुन्नी याने 18 दिसम्बर तिथि, दिन सम्मार के अवतरिस। मांहगूदास अउ अमरौतिन हर येखर दाई-ददा रीहिस। महिनत मजूरी येखर जीवन-बसर के साधन रिहिस। ओखर भाग म थोरिक बिद्या रिहिस अउ ते अउ कम उमर म बिहाव होय के कारन घासीदास के जिनगी के नंदिया म झटकुन जिम्मेदारी के पूरा आगे। घासीदास के जनम के संबंध म एक दोहा हवै:
पौस मास चौदस तिथि, पड़ेव दिन सोमवार।
मोरहि सूर्योदय समै, गुरु लियो अवतार॥
जुवानी के अमरत ले घासीदास समाज म फइले बिसंगती के विद्रोही होगे। सामाजिक बिसमता येला नई भाइस। समाज के निम्न वर्ग अउ दलित जाति के लोगन के उत्थान बर कुछु कारण करे के मन होइस। सामाजिक समरसता अउ सांसारिक जिनीस सत ल जाने बर सन्यासी होगे। सत ल जाने बर घासीदास सन्यासी होगे। सत असन अनमोल जिनीस ल पाये बर वाजिब साधना के जरूरत परिस। बर-पीपर सांही पवित्र वृक्ष ल छोड़के ये औंरा-धौंरा असन साधारन पेड़ के खाल्हे तपस्या म लीन होगे। ये घासीदास के निम्न वर्ग लोगन के प्रति ओखर पिरीत अउ लगाव के प्रतीक आय। लगन अउ साधना ले घासीदास एक चमत्कारिक फल सत के प्राप्ति होइस। बाद म इही सत ल दुनिया म सतनाम के संग्या मिलीस। कई बछर ले घासीदास ये असधारन खोज सत ल लोगन के हिरदे तक पहुंचाते रिहीस। परिनाम सरूप एक पंथ के प्रादुर्भाव होइस जेन ह सतनाम पंथ के नाम ले जाने गीस अउ येखर मनइया याने अनुकरन करइया सतनामी कहाइस। समै के साथ सतनाम पंथ के मनइया मन बाबा घासीदास के अमर संदेस ल संसार ल सुनावत रिहिन। आज घलो बाबा के अनमोल बानी ल एक गीतात्मक शैली मं कहे जथे, जेला पंथीगीत के नाम से जाने जाथे। आज ये पंथीगीत कोनों बिसेस पंथ या जाति के गीत न हो के एक जनसामान्य मंचीय नृत्यलोक गीत के रूप धर ले हे। हर बछर दिसम्बर महीना के अट्ठारह तारीख म सतनाम पंथीय जन बड़ धूमधाम से स्वेत धजा ले सजे जैतखाम, जेन ह सत के अस्तित्व के यथार्थता के प्रतीक आय, अउ गुरु बाबा घासीदास जी के फोटू के समक्छ मांदर के थाप अउ मंजीरा के नीक धुन के संग गोल भांवर नाचत संत गुरुघासीदास ल सुमरत ओखर बानी ल मुखरित करथे।
तन्ना हो नन्ना
मोर तन्ना हो नन्ना
जग मं तैं बगराए सतनाम
तैं धरम के अलख जगाए
तैं गियान के संदेस सुनाए
गांव-गांव म खडे हे जैतखाम
जग मं तैं बगराए सतनाम…।
संत बाबाघासीदास जी हर कबीर असन ये देह ल नश्वर बताइस। पंच तत्व ले बने काया ल पंच तत्व म विलीन होय के बात किहीस ये हमर मनुखचोला ल एक सजीव पुतला के रूप म निरूपित करीस। इही पोठ बात ह पंथीगीत मं मिंझरे हवै-
ये माटी के काया
ये माटी के चोला
कै दिन बर आए हस
तैं बतइ दे मोला
ये माटी…।
पथभ्रस्ट संसार ल संत सिरोमनी बाबा घासीदास हर छत्तीसगढ़ भर म घूम-घूम के उचित रस्ता देखइस। जगत के घात कीमती सत ल लोगन के कान म अमरत हिरदे मं धरइस। ईश्वर के अस्तित्व ल कोनो ईंट-पाथर म नइ होय के गोठ गोठअइस, जेन ल सत नाम पंथ के लोगन गीत गावत बाबाजी ल हिरदे ले सुमरथै-
मंदिरवा म का करे जइबो
अपन घर ही के देव ल मनइबो
पथरा के देवता हालय नहीं डोलय हो
हालय नहीं डोलय
मंदिरवा म का….।
सतधरम के चहिता गुरु घासीदासजी हर सत अउ अहिंसा के पुजारी रिहिस। जन-जन ल सत मारग म चले बर प्रेरित करते रिहिस। दलितोत्थान खातिर बाबा हर अहिंसच ल निक बताइस अउ सतनाम के परचार-परसार खातिर बियर्थ आडम्बर के सहारा नइ लीस। संपूरन छत्तीसगढ़ म घूम-घूम के लोगन ल इही बात के सिक्छा देते रिहिस कि यदि कोनों आदमी हर कोनो दिगर ल अपन श्रध्दा के पात्र मानथे त ओखर बर हार्दिक भाव-पिरीत के समरपन ह श्रध्दा फूल भेंटे बरोबर होथे। ये बिलकुल सही बात आय कि जम्मो सांसारिक जिनीस ह मिथ्या होथे, तभे तो हमर सतनामी भाई मन हर आज घलोक सादा बरन धजा ले सजे संवरे जैतखाम के समक्छ भाव-विभोर हो के नाचत-गावत झूमथै-
तोला कहंवा ल लानव गुरु आरूग फूल
तोला कइसे के चढ़ावंव गुरु आरूग फूल
गइया के दूध ल बछरू जुठारे हे
कोठी के अन्न ल तुरही जुठारे हे
तरिया के पानी ल मछरी जुठारे हे
चंदा सुरूज ल चंदा लीले हे
हिरदे के भाव रे आरूग फूल
तोला इही ल चढ़ावंव गुरु आरूग फूल
आदिसंत घासीदासजी ने जीवन पर्यंत हितोपदेस के संदेश देते रिहिस। मनुखधरम ल जिनगी के सार धरम बताइस। जिनगी म आत्मगियान के संग बेवहारिक गियान के जरूरत के गोठ गोठअइस। बड़ा मधुर अउ सहज ढंग ले जन-जन म मया-पिरीत अउ भाईचारा के संचार करीस। गुरुबर घासीदास जी के करमप्रधान मनुख जिनगी के संदेश ह हमर सतनामी बंधु मन के गीत ले सुने बर मिलथै-
सत के धजा
गड़े हवे मोर अंगना
बाबा गुरुघासी दास
जुबां-जुबां मीठ भासा
अरपन हे तोला
पिरीत के दीयना
सत के धजा…।
संतश्री गुरुघासीदास हर निम्नवरगीय समाज म सुवाभिमान के घला बिगुल बजाइस। समाज म अनुखपना ल बड़ा सुग्घर ढंग ले रखीस। लोगन ल जनकल्याण के पाठ पढाइस। समाज ल एक नवा बाट के दरसन करावत सन् 1850 के फरवरी महीना के बीस तारीख के दिन संत श्रेष्ठ घासीदास हर ब्रह्मलीन होगे। आज बबा के प्रत्यक्छ दरसन तो संभव नइ हे पर ओखर बताय पोठ-गोठ के संगरह हर ओखर प्रत्यक्छता के पोठ प्रमाण आय। बाबा गुरुघासीदास की जय हो।
टीकेश्वर सिन्हा गब्दीवाला
शिक्षक
सुरडोंगर, जिला-दुर्ग